सीजफायर-अशोक सवाई

(जागतिक)
अभी तक ईरान और इस्रायल के बिच एक दुसरे पर हुए हमले, सामरिक हथियारों से बंबारी , और दोनों मुल्कों का भारी नुकसान इन सारी ख़बरों से पाठक वर्ग बेख़बर होंगे ऐसा बिलकुल लगता नही। खैर! हमने पिछले आर्टिकल में कहाॅं था की, ईरान और इस्रायल के बिच चलनेवाली जंग ज्यादा दिन तक लंबी खिंचनेवाली नही। आखिर १२ वे दिन के बाद जंग रूक गयी। लेकिन इसका मतलब यह नही की हमेशा के लिए रूक गयी। अगर मामला फिर से बिघडता है तो जंग फिर से शुरू हो सकती है।असलियत यह है की, जंग शुरू होने से पहले अमरीका और इस्रायल को ईरान की सामरिक शक्ती, उनके हथियारी ज़खिरा का जरासा भी इल्म नही था। दोनो को लगा हम ईरान पर हमला करेंगे और वो तुरंत खुद्द को सरेंडर कर देगा और फिर हम ईरान में रिजीम चेंज करके उसके तेल पर कब्जा कर लेंगे। मगर ऐसा कुछ भी हुवा नही। उल्टा ईरान इस्रायल की तबाही की लकिरे खिंचता रहा। इस में ईरान का भी काफी नुकसान हुआ लेकिन इस्रायल की तुलना में कम था। ट्रम्प बाबू को इस्रायल की बरबादी देखी नही जा रही थी। साथ साथ मध्य पूर्व में अमरीका के जो मिल्ट्री बेस है, जिसका दबदबा दशकों से रहा है उसको भी ईरान ने भारी झटके दिये थे। इसके बावजूद भी महाशक्ती के ट्रम्प बाबू खामोश रहे, चिडीचूप रहे। क्यों की वे शांती नोबेल पुरस्कार के लिए लालायत थे। शांती नोबेल उनको मिलेगा, नही मिलेगा यह अलग बात है। लेकिन नेतान्याहू मदत के लिए अमरीका के सामने मदत के लिए गिडगिडाने लगा था। इससे ट्रम्प भी मजबूर होकर उन्होने अपने B-2 फायटर प्लेन से ईरान के फोर्डो न्युक्लिअर कार्यक्रम पर हमला किया जो नाकाम रहा। इस बिच ईरान ने अमरीका के B-2 और १२ F-35 फायटर प्लेन मार गिराये। ऐसी ख़बरे चली थी। अब ट्रम्प महोदय को भी ईरान की सामरिक ताकद का एहसास होने लगा था। वे अंदर से हिल गये थे। इस युद्ध में अमरीका न कुदे ऐसा अमरिकन आवाम का ट्रम्प पर दबाव भी था। इस लिए ट्रम्प ईरान से सीजफायर के लिए बार बार मिन्नते कर रहे थे। लेकिन सीजफायर पर ईरान का ऑफिशियल खुलासा आने से पहले ही हुजूर ट्रम्प ट्विटरपर सीजफायर हमने करवाया ऐसा ढोल पिटने लगे। उधर ईरान ने तुरंत इसका खंडन करते हुवे कहाॅं की सीजफायर कतर और रूस की मध्यस्था से हुआ है। जैसा ईरान का यह बयाॅं आया वैसा ट्रम्प का ट्विट डिलीट हुवा। इस बिच अमरीका की नाजायज औलाद इस्रायल ने फिर से ईरान पर हमला किया। इस से जनाब ट्रम्प का घुस्सा सातवे आसमान पर चला गया। भडके हुवे ट्रम्प ने नेतान्याहू को सार्वजनिक रूप से आडे हात लिया, किसी गली, मोहल्ले वाले मवाली, गुंडे जैसी भद्दीभद्दी गाली वाली बक दी। यह महाशक्ती के राष्ट्राध्यक्ष के लिए बडी शर्मनाक बात है। जिस व्यक्ती के विचार और सोच का स्तर जितना निचा होता है उतनी ही उसकी हरकते निचले स्तर के होते है। जब से ट्रम्प अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष बने तब से उस पद की गरिमा को धक्के लगने लगे। साथ मे दुनिया में अमरीका की साख निचे आने लगी। हमारे वालों का हाल भी इससे अलग नही। गाली बकते हुवे ट्रम्प का अंदाज कुछ ऐसा होगा *अबे वो नेतान्याहू काहे दोबारा ईरान से पंगा लिया बे? काहे अपनी बरबादी ज्यादा चौडी करना चाहता है बे तू? मै इधर अपने शांती नोबेल के लिए जद्दोजहद्द कर रहा हूॅं और तू उधर उसपर पानी फेरने की कोशिश में लगा है। अगर ऐसी हरकते करता रहा तो ईरान के हातों मर जाएगा, मिट जाएगा, तेरा देश दुनिया के नक्शे से हट जाएगा बे।*
कल याने की ता. २६/६/२५ को ईरान के सुप्रीम लिडर अयातुल्ला अली खामेनेई ने ऑफिशियल घोषणा की है। सीजफायर हो गया। लेकिन साथ में इस्रायल को चेतावनी भी दी गयी की अगर उसने फिर से जरासी भी गुस्ताख़ी करने की कोशिश की तो ईरान बक्षेगा नही। दुनिया के नक्शेसे हटा देगा। अमरीका को भी आगाह किया, अगर इस बार अमरीका बिच में आया तो। मिडल ईस्ट में अमरीका के जो मिल्ट्री बेस और सामरिक अड्डे है वो भी ध्वस्त कर दिए जायेंगे। ये चेतावनी ईरान ने इस लिए दी की, उसको दोनो मुल्कों पर बिलकुल ही ऐतबार नही था। साथ में दुनिया के कहीँ मल्कों का भी। सिर्फ भक्त मंडली छोड दे। इसे कहते है ५६ इंच का सीना। अमरीका जैसे महाशक्ती को धमकाना कोई गुड्डा-गुड्डी का खेल नही हुजूर… ईरानी आवाम जीत जश्न मना रही थी तो उधर ट्रम्प बाबू का स्टेटमेंट आया, ईरान के पक्ष में कशिदे पढें जा रहे थे। ईरान जंग बडी बहादूरी से लडा, बडी हिंमत है उस में वगैरा वगैरा, इरान की बडी तारिफ़ करने लगे। पती नही क्यों? ईरान अपना तेल चायना को दे सकता है ट्रम्प बाबू बोले। अरे भैय्या ट्रम्पवा तोहार की पाबंदी के बावजूद भी ईरान चायना को तेल बेचते आ ही रहा है ना? अमरीकी पाबंदी का असर ना ईरान पर था और ना ही चायना पर। तो काहे बेफुजूल की बातें करत हो भैय्या? ईरान के जश्न पर ट्रम्प का यह स्टेटमेंट ऐसा था जैसा बेगाने शादी में अब्दुल्ला दिवाना।
एक तरफ ईरान की आम आवाम जीत का जश्न मना रही थी। मुल्क में राष्ट्रगान बज रहा था। देशभक्ती का आलम सारी आवाम पर था। तो उधर इस्रायल में मातम छाया हुवा था। लोग अपने अपने घर धुंड रहे थे। घरों के मलबे में दबा हुवा सामान खोज़ रहे थे। एक जमाने में यहुदी इस्रायल में जन्नत की खुशीयाॅं लूट रहे थे। ग़ाज़ा के लोगों की मौत पर सेलिब्रेशन मना रहे थे। इस्रायल की कुकर्तुतो से फिलिस्तीनी आज भी जिल्लत जिंदगी जी रहे है। इस्रायल पर आज वक्त का ऐसा तमाचा लगा की यहूदी खुद्द जहन्नूम की जिंदगी, जिल्लतभरी जिंदगी जीने पर मजबूर हो गये है। यहूदीयोंने कभी सपने में भी सोचा न होगा ऐसी जिंदगी आज वो जी रहे है। जैसी करनी वैसी भरनी इसी को ही कहाॅं जाता है। हम हमेशा कहते आ रहे है की, वक्त का अपना एक मिजास होता है, कभी वो बेरहम तो कभी मेहरबाॅं होता है। आज वक्त का मिजास ईरान के लिए मेहरबाॅं है तो इस्रायल के लिए बेरहम। इस लिए हमेशा वक्त के साथ चलना चाहिए। हमारे यहाॅं धन की छनछनाहट पर और पग में घुंगरू बांधकर ता था थैय्या करनेवाली हमारी गोदी मिडिया बुनियादी ख़बरे कभी नही दिखाएगी। भक्ती में डुबी हुयी लाचार और धन की लालची मिडिया से उम्मीद भी क्या कर सकते है हम भला। भक्त दो प्रकार के होते है। पहले भक्त जो अपनी लगन और निष्ठा से अपने नेता से जुडे होते है। दुसरे भक्त बनावट या फर्जी होते है। इनके हात किसी बडे पत्थर नीचे दबे होते है। इनको डर होता है की नेता कही अपनी इज्जत सार्वजनिक रूप से उछाल न दे, या फिर नेता के आर्थिक लाभार्थी होते है। फर्क यह है की अगर नेता मर जाये तो पहले को खुशी तो दुसरे को चिंता होती है। (अब धन कौन देगा इसकी)
अमरीका से इस्रायल को दी हुयी एअर डिफेन्स सिस्टीम, अमरीका का थाड सिस्टीम, आयर्न डोम, सैनिकी हेड क्वार्टर, खुफिया एजंसी मोसाद का हेड क्वार्टर, स्टाॅक एक्सचेंज, कही बिझनेस इस्टॅब्लिसमेंट, मिल्ट्री और फायनान्स पाॅवर, इस्रायल के कही बडे शहर, शहरों की बडी बडी इमारते, आलीशान माॅल्स, ऑफिसेस, एअर पोर्ट, बंदरगाह, आयफा पोर्ट सारे के सारे मलबे में तब्दिल हो चुके है। जिस पर इस्रायल को भारी गर्व था, बडा नाझ था ईरान ने उसे पूरा धराशाही कर दिया। युं कहिए की ईरान ने इस्रायल की पूरी बॅकबोन तोड दी है। इसका मलाल इस्रायल और अमरीका को बरसों तक रहेगा। अपने पूर्वस्थिती पर आने के लिए इस्रायल को सालोसाल लगेंगै। यह मुल्क पचास साल पिछे चला गया। जिसको इस मकाम पर पहुचने के लिए पचास साल लगे थे। अगर अमेरिका, इस्रायल, ईरान और भी मुल्क निगोशिएशन के टेबल पर आते है तो ईरान अपने तीन प्रमुख डिमांड रखेगा।
१) ग़ाज़ा से इस्रायल का कब्जा तुरंत हटाया जाये और फिलिस्तिनीयों को पूरी पूरी आझादी दी जाए।
२) मिडल ईस्ट में अमरीका अपना मिल्ट्री हस्तक्षेप न करे।
३) ईरान के परमाणु कार्यक्रम में कोई भी दखल अंदाज न दे।
इसके अलावा और भी कही मुद्दे होंगे। लेकिन ईरान की उक्त प्रमुख शर्ते अमेरिका, ईस्राईल मानेगा नही मानेगा, बात बनेगी नही बनेगी इस पर ही युद्ध का फायनल राउंड निर्भर रहेगा। अगर टेबलपर दोनो फक्षों की बात बनती है तो ठिक, नही तो फिर से इस्रायल, अमेरिका और ईरान के आसमां पर जंग के बादल मंडराने लगेंगे। फिर ये बादल धीरे धीरे सारी दुनिया का आसमां अपनी आगोश में लेने लगेंगे। खुद़ा न करे ऐसा न हो, हम भी यही चाहते है। अमन चैन की दुऑं मांगने वाली दुनिया की ८० फ़िसदी आवाम भी यही चाहेंगी। मगर खुद़ा ना ख़ास्ता ऐसा नही हुआ तो दुनिया के कही मुल्क अपने नक्शेसे हट जाएंगे या फिर उनका भूगोल बदल जाएगा। क्यों की दुसरे महायुद्ध से यह तीसरा महायुद्ध बीस गुना ज्यादा भयानक होगा और परिणाम भी भयानक होंगे ऐसा विशेषज्ज्ञ का मानना है।
ईरान के सुप्रीम लिडर अयातुल्ला (अयातुल्ला यह एक ईरानी पदवी है) अली खामेनेई को भारत से लगाव है। भारत का राज्य युपी के बाराबंकी से वे ताल्लूख रखते है। उनके दादा, परदादा यही से थे। इसलिए वे भारत के लिए अपने दिल में साॅफ्ट काॅर्नर रखते है। उनके नेतृत्व में ईरान की भूमी भी नरम है। अगर आज भी भारत ईरान के सामने पक्की दोस्ती का हाथ बढ़ाता है तो ईरान खुशी खुशी थाम लेगा। लेकिन उसके लिए भारत के पास दर्या दिली, उच्च प्रती की विदेश नीती और कूटनीती होनी चाहिए। क्या मौजूदा स्थिती में भारत के पास वो नीती है? खैर! अयातुल्ला अली खामेनेई सुप्रसिद्ध ऑथरों की किताबे पढ़ते है, अच्छी शेर-ओ-शायरी भी कर लेते है। इसलिए वे नर्मदिल, विनयशील, संवेदनशील है। उन्होने अतीत में कभी एक फ़तवा जारी किया था की ईरान परमाणू बम नही बनाएगा। बम से मासूमों की मासूमियत और इंसान की इंसानियत रौंदी जाती है। लेकिन समय हमेशा अपनी करवट बदलते रहता है। इसलिए ईरान के मजलिस में (संसद) सांसदोंने परमाणू बम बनाने का बील पास कर लिया। ईरान की मेहनतकश आम आवाम भी यही चाहती है। वक्त का तगाजा और मुल्क की सुरक्षा को तवज्जो देते हुए खामेनेई अपना फ़तवा पिछे ले सकते है। ऐसा पिछले ३५ साल से ईरान की सियासत और वहाॅं के लिडर को कव्हर करने वाले वरीष्ठ पत्रकार एम. ए. नकवी का कहना है। ईरान की मजलिस में और एक बील पास किया गया वो था IAEA=International Atomic Energy Agency= आंतरराष्ट्रीय परमाणू उर्जा एजन्सी। बील के माध्यम से इस संस्था के नुमाइंदों को ईरान में घुसने पर पाबंदी लगा दी। नो एंट्री। मतलब उक्त एजंसी ईरान में अब परमाणू कार्यक्रम में हस्तक्षेप नही कर सकेगी। इससे ईरान अपने न्युक्लिअर कार्यक्रम बडा सुकून से चला सकता है।
जब हम इतिहास के पन्ने पलटते है तो देखा जा सकता है की, जब कभी भारत के साथ कोई खडा न था, तब ईरान ही था जो भारत के साथ मजबुती से खडा रहा था। वो ईरान ही था जिसने चाबहार गॅस लाइन प्रोजेक्ट दस साल के ॲग्रीमेंट पर पहले भारत को दिया था। वो ईरान ही था युनायटेड नेशन्स में हर वक्त हर पल भारत का साथ दे रहा था। वो ईरान ही था सबसे सस्ते में भारत को तेल और गॅस सप्लाय करता था। (बीजेपी सरकार आने से पहले भारत में पेट्रोल/डिझेल/गॅस सिलेंडर के दाम सस्ते हुआ करते थे। आज वो सपना बन गया) जब इस्रायल ने F-35 फायटर प्लेन से ईरान पर पहले हमला करके बेहुदा हरकत की थी तब ईरान को उम्मीद थी की, भारत कम से कम इस बेहुदा हरकत की भारत सरकार निंदा करे। लेकिन भारत के नेतृत्व ने चुप्पी साध रखी थी। इसपर नेतृत्व ने बिलकुल भी अपने ओठ विलग नही होने दिये। क्या कहे ऐसे नेतृत्व को। भारत वासीयोंको अपने आप में शर्म आती होगी ऐसे नेतृत्व पर। इस लिए ईरान से भारत के दुतावास को जो पत्र आया था उस में साफ साफ लिख़ा की, भारत की आवाम का, अन्य भारतीय पाॅलिटिकल पार्टी का, भारतीय संस्थानो का और जो ज्ज्ञात अज्ज्ञात है जिन्होन ईरान के संकट की घडी में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से ईरान का साथ निभाया उन सभी का ईरान ने शुक्रिया अद़ा किया है। सिर्फ भारत सरकार, सरकार की पार्टी और पार्टी के अंधभक्त छोडकर। और पत्र के नीचले हिस्से में लिख़ा था *जय ईरान जय हिंद* ये *जय हिंद* भारत की आवाम के लिए था। जिन्होने ईरान को नैतिक समर्थन दिया था। बीजेपी सरकार के लिए नही। खैर...
आज की घडी में इस्रायल और ईरान दोनो मुल्को की युद्ध नीती, उनकी सामरिक ताकद, उनकी सियासत को, उनके दावपेंच समझने में समय लगेगा। वक्त उनका लेखाजोखा अपने अंदाज में दुनिया के सामने लायेगा। दोनो मुल्को का सीजफायर आगे कब कहाॅं और कैसे मोड लेगा इसका किसी को पता नही।
अशोक सवाई
91 5617 0699
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