बोधिसत्व रैदास क्या चाहते थे?
डॉ एस एन बौद्ध
बोधिसत्व रैदास
बोधिसत्व रैदास का जन्म सन लगभग 1398 में वाराणसी में हुआ था और मृत्यु लगभग 1520 ईसवी में चित्तौड़ गण राजस्थान में ब्राह्मणों द्वारा हत्या करने पर हुआ था।
रैदास का जन्म वाराणसी के गोबरधनपुर गांव में हुआ था इनके पिता का नाम संतोखदास और माता का नाम कलसी देवी था इनकी जीवनसंगिनी का नाम लोना और पुत्र का नाम विजयदास था।
बोधिसत्व रैदास के मुख्य लेख जिसके कारण ही ब्राह्मणों ने शाजिस करके रैदास की हत्या किया था।
जीवन चारी दिनों का मेला रे,
👉बाभन झूठा, वेद भी झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।।
👉 मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजति बाहर चेला रे।
👉 लड्डू भोग चढावति जनता, मूरति के ढिंग केला रे।।
👉 पत्थर मूरति कछु न खाती, खाते बांभन चेला रे।
👉 जनता लूटति बांभन सारे, प्रभु जी देति न अधेला रे।।
👉 पुन्य – पाप या पुनर्जन्म का, बांभन दीन्हा खेला रे।
👉 स्वर्ग – नर्क बैकुंठ पधारो, गुरू शिष्य या चेला रे।
बाभन जाति सभी बहकावे, जनह तंह मचै बबेला रे।।
👉 छोडि के बांभन आ संग मेरे, कह विद्रोही अकेला रे।।
👉 रैदास विप्र मत पूजिये, जो होवे गुणहीन।
पूजिये चरन चांडाल के, जो होनें गुण प्रवीन।
👉 रैदास ब्राह्मणों के धर्म में नहीं मान सम्मान।
बुद्ध धम्म अपनाय लो बनो श्रेष्ठ इंसान ।
👉 जाति जाति में जाति है ज्यों केलन में पात
रैदास मानष न जुड सके जब तक जाति न जात ।
👉 जाति पाति के फेर में उलझ रहें सब लोग।
मानुसता कूं खात है रैदास जात का रोग।।
👉 ऐसा चाहूँ राज मै जहां मिले सभी को अन्न।
ऊंच नीच सब सम बसे रैदास रहे प्रसन्न।।
👉 रैदास जन्म के कारणें होत न कोउ नीच।
नर कू नीच करि डारि है ओछे कर्म के खीच।।
बोधिसत्व रैदास बोधिसत्व थे उनके गुरू भंते रेवत थे ब्राह्मणों ने लोगों को गुमराह करने के लिए रामानंद का नाम लिखा था रैदास ने अपने पूरे जीवन ब्राह्मणवाद के खिलाफ आंदोलन किया ब्राह्मणों ने शाजिस के तहत रैदास को गंगा का भक्त और भक्ति भावना से जोड़कर उनका ब्राह्मणीकरण कर दिया है जो कि रैदास के विचारों को खत्म करने की गहरी शाजिस है
संत रविदास की मृत्यु के रहस्य को बहुजन समाज के बिरोधियों अर्थात ब्राह्मणों ने उनका सीना चीरकर जनेऊ दिखाने का चमत्कार बता दिया जबकि बोध रविदास चमत्कारवाद के प्रबल बिरोधी थे।
संत रविदास जी को चित्तौड़ के राजा ने अपने राज्य में ब्राह्मणों के साथ शास्त्रार्थ करने के लिए आमंत्रित किया वहां उनसे कहा गया यूं तो ब्राह्मण ही ज्ञानी – बुद्धिमान होते हैं जिन्हे सभी वेद पुराणों का ज्ञान होता है और जो ज्ञान के प्रतीक में जनेऊ धारण करते हैं ब्राह्मणों के उकसाने पर राजा ने कहा कि रविदास जी आप ज्ञानी है तो अपनी जनेऊ दिखलाओ।
रविदास जी ने कहा कि मै शरीर पर दिखावटी जनेऊ धारण नही करता, मेरे अन्तर्मन में ज्ञान का प्रतीक जनेऊ धारण है।
रविदास इस कथन पर ब्राह्मणों ने मौका पाकर रविदास जी का सीना रांपी से चीर दिया जिसके कारण वही पर उनकी मृत्यु हो गई और ब्राह्मणों ने लोगों को गुमराह करने के लिए रविदास जी के जय जय कार करने लगे और वहां पर मौजूद सभा को ब्राह्मणों ने कहा कि रविदास जी चमत्कारी है भगवान के सच्चे भक्त है उन्होने खुद ही अपना सीना चीर कर जनेऊ दिखाया है इस प्रकार की मनगढ़ंत कहानी गढकर भोले भाले लोगों को कोल कल्पित कहानी बनाकर गुमराह कर दिया क्योंकि उस समय ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा थी और उनका वर्चस्व था इसलिए सभी इसको रविदास का चमत्कार मानकर गुमराह हो गये जैसे कि आज नरेंद्र मोदी काल्पनिक राम की पत्थर की मूर्ति में प्राण डालकर जिंदा कर रहा है और ब्राह्मणों के झूठ और अफवाह को सच साबित कर रहा है।
रैदास के सच्चे अनुयायी बौद्ध बनें तभी रैदास की विचारधारा पूरी होगी इसलिए ही बोधिसत्व सिंबल आफ नालेज बाबासाहब डॉ भीमराव आंबेडकर ने 14अकटूबर 1956 को हिन्दू धर्म को लात मार कर 5लाख अनुयायियों के साथ बुद्ध धम्म अपनाया था और पूरे भारत को बुद्धमय बनाने का संकल्प लिया था ।
भारत के मूलनिवासियों का भला तभी होगा जब रबिदास पंथी कबीर पंथी सतनामी आदि सभी लोग अपने अपने पंथ को मानते हुए अपना धर्म बुद्ध धम्म लिखे तभी वास्तव में हम रैदास और कबीर के सच्चे अनुयायी हो सकते हैं और रेदास और कबीर की इच्छा पूरी हो सकती उनका और बाबासाहब डॉ भीमराव आंबेडकर का मिशन बुद्धमय भारत पूरा हो सकता है।
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लेखक बौद्धाचार्य डॉ एस एन बौद्ध 8700667399
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