पाखंडी समाज की आंख खुल जाय..

एक विधवा बहू ने अपनी सास को बताया कि, वह तीन माह के गर्भ से है. परिवार में हंगामा मच गया, समाज में भूचाल आ गया, लोगों ने पंचायत जुटाई और उस बहू से बच्चे के बाप का नाम जानना चाहा, भरी पंचायत में बहु ने बताया कि, तीन माह पूर्व मैं प्रयाग राज, त्रिवेणी संगम स्नान करने गई थी, स्नान के समय मैंने गंगा का आहवान करते हुए तीन बार गंगा जल पिया था, हो सकता है, उसी समय किसी ऋषि
महात्मा,महापुरुष का गंगा में वीर्य अस्खलन हो गया और वो आहवान के साथ मैं पी गयी, उसी से मैं गर्भवती हो गई,
सरपंच जी ने कहा, यह असंभव है, ऐसा कभी हो नहीं सकता कि, किसी के वीर्य पी लेने से कोई गर्भवती हो जाय, उस महिला ने सरपंच को जवाब दिया और कहा.. हमारे धर्म ग्रंथों में यही बात तो दिखाई गई है कि,
विभँडक ऋषि के वीर्य स्खलन हो जाने से श्रृंगी ऋषि पैदा हुए,
हनुमान जी का पसीना मछली ने पी लिया, वह गर्भवती हुई और मकरध्वज पैदा हुए,
सूर्य के आशीर्वाद से कुंती गर्भवती हो गई और कर्ण पैदा हुए,
मछली के पेट से मत्स्यगंधा (सत्यवती)पैदा हुई, खीर खाने से राजा दशरथ के तीनों रानियां गर्भवती हई और चार पुत्र पैदा हो गये,
जमीन के अंदर गड़े हुए घडे से सीता पैदा हुई!
ये सारी बातें संभव है, किन्तु मेरी बात असंभव है!!
वैसे मैं बताना चाहती हूं कि मैं गर्भवती नहीं हूं,मैंने यह नाटक इसलिए किया था कि, इस पाखंडी समाज की आंख खुल जाय,आप लोग ऐसे धर्म पुस्तकों को आज के समाज को जरूरत नहीं है जिससे कि पाखंड, अविश्वास एवं अज्ञानता परोसा जाए, जिसमे ऐसी कहानियॉ लिखी गयी है!
आप लोग चाहें तो मेरा मेडिकल परीक्षण कर सकते हैं!।
हमारे समाज को वैज्ञानिक एवं तार्किक सोच की जरूरत है, अंधविश्वास, पाखंडी एवं अंधभक्ति से मुक्त हो…!
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दैनिक जागृत भारत