महाराष्ट्रमुख्यपानविचारपीठ

मिलिन्द प्रश्न

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राजा बोला–“भन्ते ! आप लोग कहते हैं कि सौ वर्षों तक भी पाप-मय जीवन बिताने पर यदि मरने के समय ‘बुद्ध’ की स्मृति हो जाय तो वह देवलोक में जाकर उत्पन्न होता है। मैं इसे नहीं मानता। आप लोग ऐसा भी कहते हैं कि एक जीव को भी मारने से वह नरक में उत्पन्न होता है। इसे भी मैं नहीं मानता।
महाराज ! क्या एक छोटा पत्थर का टुकड़ा भी बिना नाव के पानी में तैर सकता है ?
नहीं भन्ते।
महाराज ! और क्या सौ गाड़ी भी पत्थर के टुकड़े नाव पर लाद दिए जाने से पानी में नहीं तैर सकते ?
हाँ भन्ते ! तैर सकते हैं।
महाराज ! सभी पुण्य कर्मों को नाव के ऐसा समझना चाहिए।
भन्ते ! आपने ठीक समझाया।

पाप और पुण्य के विषय में

राजा बोला-“भन्ते ! पाप और पुण्य इन दोनों में कौन अधिक है।
महाराज ! पुण्य अधिक है।
कैसे ?

महाराज! पाप करने वालों को बड़ा पश्चात्ताप होता है, और वे अपना पाप मान लेते हैं, इसलिए पाप नहीं बढ़ता। किंतु पुण्य करने वाले को कोई भी पश्चात्ताप नहीं होता। कोई भी पश्चात्ताप नहीं होने से एक प्रमोद होता है, प्रमोद होने से प्रीति होती है, प्रीति पाए हुए मनुष्य का शरीर शान्त हो जाता है, शरीर शान्त हो जाने से सुख होता है, सुख होने से चित्त की समाधि होती है, और समाहित हो जाने से यथार्थज्ञान उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार पुण्य अधिक ही होता जाता है।
महाराज! कोई लँगड़ा और लूला आदमी भी यदि भगवान् को एक मुट्ठी कमल-फूल भेंट करे तो वह इक्यानबे कल्पों तक विनिपात (दुर्गति) को नहीं प्राप्त होगा।
महाराज ! इसीलिए कहा है कि पाप से पुण्य अधिक है।
भन्ते ! आपने ठीक कहा।

जाने और अनजाने पाप करना

राजा बोला-“भन्ते जो जानते हुए पाप कर्म करता है और जो अनजाने कर बैठता है; उन दोनों में किसका पाप अधिक है ?”
स्थविर बोले–“महाराज ! जो बिना जाने पाप कर्म करता है उसी का पाप अधिक है।”
भन्ते ! तब तो जो मेरे राजपुत्र या मन्त्री बिना जाने पाप करते हैं, उनके लिए मुझे दुगना दण्ड देना चाहिए।
महाराज ! यदि कोई एक लोहे के दहकते लाल गोले को जानते हुए छुए और दूसरा उसे बिना जाने हुए छु दे; तो दोनों में कौन अधिक जलेगा?
भन्ते ! जो बिना जाने छू दे वहीं ।
महाराज ! इसी तरह जो बिना जाने पाप करता है, उसे अधिक पाप लगता है ?
भन्ते ! आपने ठीक कहा ।

मिलिन्द प्रश्न,

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